मानव सभ्यता के उद्भव से ही नदियों का जीवन में
बड़ा महत्व रहा है। नदियां न सिर्फ हमारी प्यास बुझाती है बल्कि किसी न किसी रूप
में हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने में भी सहायक होती हैं। गंगा जमुना के
मायके उत्तराखंड में नदियों का क्या महत्व है ये किसी से छुपा नहीं। इसलिए नदियों
के प्रति हमारा दायित्व और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। यह कटु सत्य है कि
बढ़ते शहरीकरण और भौतिकतावाद की दौड़ ने नदियों का प्रवाह रोका है। नदियों का
दायरा सिमट रहा है। द्रोणनगरी
देहरादून में शिखर फॉल से निकलने वाली रिस्पना नदी कभी इस शहर की शान हुआ करती थी।
प्राचीनकाल में इस नदी को ऋषिपर्णा नदी के नाम से जाना जाता था। लेकिन आज रिस्पना
दयनीय दशा में है। कल कल बहने वाली नदी आज एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है।

जिस दिन से मुख्यमंत्री
के रूप में मुझे इस राज्य की सेवा का मौका मिला, मेरे मन में यह सवाल बार बार उठता
रहा, कि आखिर रिस्पना की ये दुर्दशा क्यों। इसके लिए हम सब बराबर जिम्मेदार हैं।
इसलिए हमारी सरकार ने संकल्प लिया कि हम उत्तराखंड की नदियों, प्राकृतिक स्रोतों,
नौलों, धारों और जलस्रोतों के संरक्षण की दिशा में काम करेंगे। शुरुआत के लिए हमने
देहरादून की रिस्पना नदी और अल्मोड़ा की कोसी नदी को पुनर्जीवित करने का मिशन शुरू किया। नवंबर 2017 में मैने रिस्पना के उद्गम स्थल शिखर फॉल पर जाकर मिशन
रिस्पना से ऋषिपर्णा का संकल्प लिया था। तब मुझे ये उम्मीद नहीं थी कि हमारी सोच
एक जन आंदोलन बन जाएगी। यकीन मानिए आज जिस तरह का सहयोग इस मिशन में मिल रहा है,
वो दिन दूर नहीं जब हमारी रिस्पना नदी अपने प्राचीन स्वरूप ऋषिपर्णा में बदल जाएगी।

रिस्पना को बचाने के
संकल्प में सबसे पहले हमारे दिमाग में यह बात थी कि वृक्षारोपण के जरिए ही इस नदी
को बचाया जा सकता है। इसलिए मानसून सीजन में वृक्षारोपण अभियान शुरू करने से पहले
हमने 19 मई 2018 को गड्ढा खोदने का कार्य शुरू किया। इस कार्य में शहर के बच्चों,
बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं यानी समाज के हर वर्ग ने बढ़ चढ़कर हिस्स लिया। हमें
अंदाजा होने लगा कि यह संकल्प अब केवल सरकार का नहीं रह गया बल्कि यह जन जन का
मिशन बन चुका है।रिस्पना की तरह अल्मोड़ा
की कोसी नदी को पुनर्जीवित करने के संकल्प पर भी आगे बढ़ते जा रहे हैं। हमारे
लोकपर्व हरेला ने हमारी इस मुहिम को और भी बल दिया। हरेला पर्व के अवसर पर 16
जुलाई 2018 को अल्मोड़ा के रुद्रधारी नामक स्थान पर हमने वृक्षारोपण अभियान की
शुरुआत की। समाज के हर वर्ग की भागीदारी इस पुनीत मिशन में रही। इसी वजह से मात्र
एक घंटे में कोसी के तट पर एक लाख 67 हजार 755 पौधे रोपे
गए। इस सफल कीर्तिमान को जल्द ही लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराया
जाएगा।
जाहिर सी बात है कि कोसी तट पर
वृक्षारोपण का जो मानदंड स्थापित हुआ है उसे पार करने के लिए हमने 22 जुलाई को
रिस्पना तट पर वृक्षारपोण का महाअभियान तय किया है। इस कार्यक्रम में 40 से ज्यादा
स्कूलों के बच्चे, समाजसेवी व पर्यावरण संगठन, महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, छात्र सभी
इसमें भागीदारी करेंगे। कुल मिलाकर 22 जुलाई को रिस्पना नदी के किनारे ढाई लाख
पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है।

मैं इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी
सुधी जनों से अपील करता हूं, कि धरती को संवारने, पर्यावरण बचाने और हमारे
जलस्रोतों के संरक्षण का अभियान किसी एक व्यक्ति या एक सरकार का अभियान नहीं है।
यह एक व्यापक जन अभियान है, और इस पुनीत संकल्प को पूरा करने में आप सभी अपना
योगदान दें। हमारा प्रदेश प्रकृति के बेहद करीब है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी
उतनी ही ज्यादा है। यह गंगा की धरती है, भगीरथ की धरती है, तो क्या हम सब मिलकर रिस्पना और कोसी को बचाने का भगीरथ प्रयास नहीं कर सकते? हम वृक्षारपोण की सीख देने वाले हरेला त्योहार को मनाते हैं,
इसलिए हम सभी के मन में ये भाव जरूर होना चाहिए कि हमारे जलस्रोतों के संरक्षण की
जिम्दारी भी हमारी ही है। जिस तरह कभी ब्रिटेन के लोगों ने वहां की प्रदूषित टेम्स
नदी को जन जन की सहभागिता से एक स्वच्छ नदी में तब्दील किया है. मुझे भी पूरी उम्मीद
है कि आप सभी के सहयोग से हम रिस्पना, कोसी और प्रदेश की अन्य नदियों को
पुनर्जीवित करने के प्रयास में जरूर सफल होंगे।धन्यवाद।