जी
रयां जागि रयां
आकाश
जस उच्च,
धरती
जस चाकव है जयां
स्यावै
जस बुद्धि, सूरज
जस तराण है जौ
जाँठि
टेकि भैर जया दूब जस फैलि जयां
मेरे
प्यारे उत्तराखंडवासियों, आप
सभी को प्रकृति पर्व हरेला की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
जैसा
कि आप जानते हैं, हरेला
पर्व हमारी लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह पूरे उत्तराखंड में, विशेषतौर पर कुमायूं क्षेत्र में
हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
यहाँ
के लोग प्रकृति के बेहद नजदीक हैं। प्रकृति को अपनी दिनचर्या, तीज त्यौहार, और संस्कृति में समाहित करते हैं।
हरेला हमारी लोकपरम्परा से जुड़ा पर्व है। हरेला सावन लगने से 9 दिन पहले बोया जाता है। मान्यता है कि
हरेला जितना बड़ा होगा, फसल
भी उतनी ही अच्छी होगी, इसलिए
हरेले को किसानों की सुख समृद्धि की कामना के तौर पर भी देखा जाता है।
दुनिया
में हरेला शायद ऐसा एकमात्र त्योहार होगा जिसमें जीवों के कल्याण के साथ साथ
प्रकृति संरक्षण की कामना भी की जाती है। पेड़ लगाने और पर्यावरण बचाने की
संस्कृति की ऐसी सुंदर झलक देवभूमि उत्तराखंड में ही दिखती है।
जलवायु
परिवर्तन और ग्लोबल वर्मिंग की समस्या से आज दुनिया भर के देश चिंतित हैं। इनके
असर को रोकने के लिए सभी जरूरी प्रयास तलाशे जा रहे हैं। ये प्रयास प्रकृति और
पर्य़ावरण संरक्षण के बिना संभव नहीं हो सकते। इसलिए अगर आप हरेला पर्व के संदेश पर
बारीकी से गौर करें तो इन समस्याओं का हल मिल जाता है। उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला
पूरी दुनिया को ग्लोबल वर्मिंग के खिलाफ लड़ने का संदेश देता है।
हरेला
सुख-समृद्धि व जागरूकता का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने वृक्षों को बचाने के लिए
अनवरत प्रयास किये और हमारी पीढ़ी को स्वस्थ सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने मे
सहयोग किया। इसी तरह आने वाली पीढ़ी को अच्छा पर्यावरण देने के लिए हमें भी संकल्प
लेना होगा। हरेला के अवसर पर इस बार प्रदेश भर में वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया
जा रहा है। इस बार हरेला पर्व पर 6.25
लाख पौधे लगाये जा रहे हैं। समाज के सभी वर्ग, बच्चे, बुजुर्ग, युवा, महिलाएं, छात्र, किसान, कामगार, सभी प्रकृति के करीब ले जाने वाले
हरेला त्योहार की इस खास मुहिम से जुड़ रहे हैं।
जैसा
कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि जिस तरह स्वच्छता को एक जन
आंदोलन का रूप दिया गया, उसी
तरह जल संरक्षण के लिए जन आंदोलन की शुरुआत हो। जीने के लिए स्वच्छ प्राणवायु और
पीने के लिए साफ पानी, इन
दोनो के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए हरेला के अवसर पर हम सभी
संकल्प ले सकते हैं कि हम अपने ससाधनों के रखरखाव की जिम्मेदारी लेंगे। पिछले वर्ष
जल संरक्षण की दिशा में हमने कई प्रयास किए जिस कारण से 2018-19 में 33.4 करोड़ लीटर जल संचय करने में सफलता
हासिल की। इस दौरान 11221
चाल खालों का निर्माण, 2824
जलकुंडों का निर्माण, 500
चैकडैम और 4.2 लाख कंटूर ट्रैंच बनाए गए। इन सभी
प्रयासों से पानी बचाने में सफल रहे।
हरेला
आपको एक अवसर देता है कि आप प्रकृति को करीब से जानें, जिस प्रकृति में आप पले बढ़े हैं उसका
कर्ज चुकाने की छोटी छोटी कोशिशें करें। इस वर्ष हरेला पर आप सभी का ये उद्देश्य
होना चाहिए कि कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएंगे, साथ ही चाल खाल या अन्य तरीकों से एक
एक बूंद पानी की बचाएंगे। हमारे आज के प्रयास हमारी कल की पीढ़ियों के लिए वरदान
साबित होंगे।
धन्यवाद।
मा0 मुख्यमंत्री जी की अनोखी पहल, प्रदेश भर में वृक्षारोपण, एक व्यक्ति एक वृक्ष, आपके ईमानदार नेतृत्व में प्रगति पथ पर देवभूमि उत्तराखंड
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