Wednesday 27 September 2017

रहस्य, रोमांच, शक्ति व भक्ति का खजाना देवभूमि उत्तराखंड



मुझे आज सबसे ज्यादा प्रसन्नता इस बात की हो रही है कि मुझे ऐसे राज्य की सेवा का अवसर मिला है जिसे Land of God कहा जाता है। देवभूमि उत्तराखंड में 33 करोड़ देवताओं का वास है, और अतिथि देवो भव: के सिद्धांत पर चलना हमारी परंपरा रही है। हमारा लक्ष्य है कि ज्यादा से ज्यादा अतिथि हमारे आतिथ्य को स्वीकारें और हमें अतिथि देवः भवः के भाव को चरितार्थ करने का अवसर प्रदान करें। मैं यह पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि जो एक बार मेरी देवभूमि में कदम रखेगा वो इस धरा से सदा के लिए अपना रिश्ता बना लेगा। ये राज्य जाना ही जाता है कुदरती हवा-पानी के लिए।

जब भी कोई पर्यटन की दृष्टि से कहीं भी जाना चाहता है तो दो चीजें जरूर देखता है-अपनी इच्छा का मौसम और अपनी रुचि का स्थान। यानि किसी को सर्दी,गर्मी, गिरती हुई बर्फ अच्छी लगती है तो कोई एडवेंचर टूरिज्म का लुत्फ लेना चाहता है। उत्तराखंड में आप वो सबकुछ पा सकते हैं।

अगर आप योग और ध्यान में रुचि रखते है तो दुनिया की योग कैपिटल ऋषिकेश आगंतुकों के स्वागत के लिए हमेशा तैयार है। अगर आप पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे ऊपर रहने वाले बाघों के साक्षात दीदार करना चाहते हैं तो कॉर्बेट से बेहतर भला कौन सी जगह हो सकती है। इसी तरह गजराज हाथियों के दर्शन के लिए राजाजी नेशनल पार्क आएं।
कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत में टाइगर हब के रूप में जाना जाता है
अगर आप की रुचि एडवेंचर टूरिज्म में है तो उत्तराखंड आपके लिए खजाने जैसा है। ऋषिकेश में बंजी जंपिंग, रॉक क्लाइंबिंग, रिवर राफ्टिंग जैसे एडवेंचर स्पोर्ट्स का लुत्फ उठाने के बाद ऑली आपको मौका देता है स्नो स्केटिंग और स्कीइंग के रोमांच को महसूस करने का।
औली में एडवेंचर स्पोर्ट्स के लिए दुनियाभर के सैलानी आते हैं

इसी तरह आप पर्वतराज हिमालय के साक्षात दर्शन करना चाहते हैं तो अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ से लेकर पौड़ी-चमोली तक हिमालय के गगनचुंबी शिखरों के नयनाभिराम दृश्य आपको यहां दिखाई देते हैं।

उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहां पग पग पर धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के मठ मंदिर स्थापित हैं। विश्व प्रसिद्ध चार धामों से लेकर हेमकुंड साहिब और जीवनदायिनी गंगा के चौडे मुहाने, माता के सिद्धपीठ, और साधु संतों के सैकड़ों आश्रम  श्रद्धालुओं को यहां खींच लाते हैं।
इस साल रिकॉर्ड 21 लाख से ज्यादा यात्री चार धाम यात्रा पर आए
इसी तरह आप झीलों की सुंदरता और नौकायान के शौकीन हैं तो सरोवर नगरी नौनीताल आपके स्वागत के लिए तैयार है। नैनी झील भीमतालसातताल,नौकुचियाताल के गहरे नीले पानी में अठखेलियां करने का सौभाग्य सिर्फ इसी देवभूमि में आपको मिलेगा।

देवभूमि सुरक्षित और शांतिपूर्ण पर्यटन के लिए भी भारत में विख्यात है, शायद इसीलिए आपदा से उबरने के बाद इस साल चार धाम और हेमकुंड साहिब यात्रा पर रिकॉर्ड 21 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पधारें हैं। इसके लिए महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी, प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी,व  पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी जी का विशेष आभार व्यक्त करता हूं जो चार धाम यात्रा पर इस साल पधारे और श्रद्धालुओं को यहां आने के लिए प्रेरित किया। इसके अलावा इस साल हरिद्वार कांवड़ मेले में भी रिकॉर्ड श्रद्धालु उमड़े। मैं उत्तराखंड पधारे उन तमाम पर्यटकों-श्रद्धालुओं का हार्दिक धन्यवाद प्रकट करता हूं जिन्होंने यहां पधारकर उत्तराखंड पर्यटन की व्यवस्थाओं पर विश्वास दिखाया।

देवभूमि में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकार हमेशा प्रतिबद्द है। पर्यटन को रोजगार से जोड़ने के लिए हमने 13 जिलों में 13 नए पर्यटन स्थल विकसित करने की योजना बनाई है, जिससे न सिर्फ उत्तराखंड की छिपी हुई खूबसूरती दुनिया के सामने आ सके बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार से भी जोड़ा जा सके। इसके अलावा आध्यात्मिक रुचि वाले पर्यटकों के लिए संस्कृति ग्राम की स्थापना की जा रही है, जिससे पर्यटन, आध्यात्म और रोजगार एक साथ जुड़ जाएंगे। पलायन की मार सह रहे गांवों के विकास के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में होम स्टे योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है।

हर साल लाखों पर्टयक उत्तराखंड आकर न सिर्फ सुरम्य प्राकृतिक नज़ारों का लुत्फ उठाते हैं बल्कि एडवेंचर टूरिज्म का भी कभी न भूलने वाला अहसास लेकर जाते हैं। कण कण में देवों के वास वाले उत्तराखंड में कोई स्थान ऐसा नहीं जहां आपको आध्यात्मिकता का अनुभव न हो। कदम कदम पर पौराणिक ऐतिहासिक मंदिरों और धर्मस्थलों के जरिए आपको अद्वितीय शक्ति का अहसास होगा। शायद इसीलिए स्वामी विवेकानंद से लेकर महात्मा गांधी तक हिमालयी उत्तराखंड के दौरे पर एक बार नहीं बल्कि कई बार आते रहे।  
एक बार पुनविश्व पर्टयन दिवस पर शुभकामनाएं देते हुए मैं आपसे विविधताओं भरे राज्य उत्तराखंड में आगमन का आग्रह करता हूं।

धन्यवाद
त्रिवेंद्र सिंह रावत
मुख्यमंत्री, उत्तराखंड



Thursday 21 September 2017

रामलीला के पात्रों से मिलती है जीवन के हर पहलू की शिक्षा


शारदीय नवरात्रि के पावन पर्व की शुरुआत के साथ ही देशभर में रामलीला मंचन भी प्रारंभ हो गया। हमारी सांस्कृतिक धरोहर रही रामलीला मंचन को निरंतर नई ऊंचाइयों तक ले जाने और इसके आयोजन के लिए हार्दिक बधाई देता हूं और इसके सफल संचालन के लिए शुभकामनाएं देता हूं।
रामलीला मंचन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

जैसा कि हम सब जानते हैं कि रामलीला मंचन में भगवान राम की जीवन यात्रा को दर्शाया जाता है। यह न सिर्फ मनोरंजन का जरिया है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और एकजुटता बढ़ाने में भी रामलीला का अहम योगदान होता है। 


इन सबसे बड़ी बात ये है कि रामलीला और इसके तमाम पात्र हमारी आम जिंदगी के बहुत करीब होते हैं। इन पात्रों से कुछ न शिक्षा सीख अपने जीवन में मिलती है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के जीवन आदर्श को हम अपनी जिंदगी में उतारें तो जिंदगी सफल हो जाएगी। भगवान राम के जीवन से हमें सत्यता पर चलना, कर्तव्यपरायणता, मर्यादा और धर्माचरण की शिक्षा मिलती है। एक भाई को कैसा आदर्श आचरण करना चाहिए ये भरत से बेहतर कोई और नहीं समझा सकता। माता सीता संयम और पति परायणता की सीख हम सबको देती हैं।

सेवा का परम भाव हनुमान जी से बेहतर कौन समझा सकता है। शबरी का भक्तिभाव आज के दौर में हम सभी को अपनाने की जरूरत है। समर्पण और स्वामिभक्ति का भाव जटायु से सीखें।

आज के भौतिकतावादी युग में रामलीला मंचन की अहमियत और भी बढ़ गई है। यह हमारा संकल्प होना चाहिए कि रामलीला मंचन से जो शिक्षा मिलती है उसे अपने जीवन में उतारें। रामलीला के समापन पर दशहरा पर्व मनाया जाता है जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। राज्य का मुख्यमंत्री होने के नाते मैंने समृद्ध और स्वावलंबी उत्तराखंड बनाने के लिए कुछ संकल्प लिए हैं...ये संकल्प हैं...

गंदगी से मुक्ति का संकल्प
भ्रष्टाचार से मुक्ति का संकल्प
नशे से आजादी का संकल्प
जल संचय करने का संकल्प
एक वृक्ष लगाने का संकल्प

इस पावन अवसर पर मैं आपसे सभी से अपील करता हूं कि आप भी इन संकल्पों को आत्मसात करें ताकि हम संकल्प से सिद्धि के मंत्र को चरितार्थ करते हुए बेहतर उत्तराखंड का निर्माण कर सकें। एक बार फिर से मैं देवभूमि के तमाम स्थानों पर रामलीला के सफल आयोजन की मंगलकामना करता हूं।

धन्यवाद
त्रिवेंद्र सिंह रावत
मुख्यमंत्री, उत्तराखंड


Tuesday 19 September 2017

संस्कृत के महत्व व प्रचार प्रसार पर मेरे विचार (7 सितंबर 2017)


मानवसभ्यतायां वर्षेभ्य सूचनाया: सर्वाधिकं महत्वपूर्णं विषयम् आसीत्। सनातन धर्मावलंबिनाम् प्रसंग दर्शनानन्तरम् अवगम्यते यत् आदिकालत एव  जना: संस्कृतेनैव संभाषणम् कुर्वंतिस्म।

सहस्रवर्षेभ्य: पूर्ववेदानां रचना संस्कृते एव अभूत। ऋग्वेद: विश्वस्य प्राचीनतम ग्रंथ: अस्ति: ग्रंथ: संस्कृते एव प्रणीत अस्ति। अद्यापि विश्वस्य विभिन्नेषु देशेषु कोटिश: जना: आरोग्यप्रापणार्थम तथा च आध्यात्मज्ञान प्राप्त्यर्थं योगं एव पठंति तथा च एतादृशम एव आचरणम कुर्वंति। योगस्य मौलिकी भाषां संस्कृतम् एव अस्ति।
अस्माकम् ऋषिमुनीनां भाषा संस्कृतम् एव आसीत्। अस्माकं सिद्धपुरुषै: यस्य आयुर्वेदस्य बलेन असंख्यजनानाम् आरोग्यलाभ: विहित: तस्यापि भाषा संस्कृतम् एव आसीत्।  

कालिदासेनैव नाटकानाम् वैशिष्ट्यं स्वकीये प्रसिद्धे ग्रंथे अभिज्ञानशाकुंतले यादृशं वर्णितं अस्ति तेन विश्वस्य श्रेष्ठाविद्वांस: अभिभूता: संति। अस्मादेव कारणात् सर विलियम जॉन्स इत्यनेन वैदिशिकेन अस्य ग्रथंस्य आंग्लभाषायाम् अनुवादो विहित:

विचारयंतु भवन्त: यत् अद्य विश्वे यद् खगोलविद्याया: संभावना जाता सा केवलम् संस्कृतस्य कारणाद एव अभूत्। अहम एतदर्थं ब्रवीमि यत् शून्यस्य आविष्कारक: महान् गणितज्ञ: आर्यभट्ट स्वकीय सर्वेषां ग्रंथानाम् रचना संस्कृत भाषायां एव कृतवान् । तस्य गणितस्य सूत्राणाम् विश्वस्य बह्वीषु भाषासु अनुवादो विहित:

अद्यापि प्राचीन भारतस्य मानवसभ्यताया: महत्वपूर्णां भूमिकाम् निर्वहताम् अर्थशास्त्रंकृषिविज्ञानम् खगोल विज्ञानम्राजनीति ग्रंथ: संस्कृतेनैव रचिता: सन्ति। सर्वाधिकं प्रमुखं अस्ति यत् अद्यापि विश्वम् भगवद्गीताया: अनुकरणम् करोतिसा भगवद्गीता संस्कृतभाषायामेव लिखिता अस्ति।
देववाणी परोपकार मिशन के छठवें संस्कृत सम्मेलन का शुभारंभ करते हुए

व्यवहार रूपेण संस्कृतम् बिना जीवनदर्शनस्य कल्पना एव न कर्तुम् शक्यते। अद्य अस्मिन सम्मेलने वयंसंस्कृतस्य एतादृशं महत्वं एव आचरणार्थम् तथा च संस्कृतस्य प्रचाराय प्रसाराय च विचार विमर्श कुर्म:

अद्य संस्कृत अपरम् अपि महत्वपूर्ण वैशिष्टम अस्ति। अस्या भाषाया: व्याकरणम् सुव्यवस्थितम् नियमपूर्वकं च अस्ति। महर्षि पाणिनिना अस्या: भाषाया: व्याकरणम् स्वकीयया अष्टाध्यायी रचनया अद्वितीयं कार्यं विहितम्। अस्या भाषाया: व्याकरणानुसारं व्यवहारे यत्किमपि उच्चारणं भवति तद्नुसारं एव लेखनम् विधीयते। महर्षि पाणिने: व्याकरणानुसारम् सर्वेषां वर्णानां तत्तद् मुखोच्चारित स्थानै: एव विधीयते। अत्र कंठतालुमूर्धाप्रभृति स्थानै: वर्णानां शुद्धोच्चराणं विधीयते। एतस्मात् कारणात् एव इयं भाषा भाषावैज्ञानिकै: वैज्ञानिकी भाषा कथ्यते।
संस्कृत भाषा न केवलम् संवादस्य कृते प्रयुज्यते अपितु इयं भाषा संपूर्णं विश्वं एकस्मिन्नेव सूत्रे योजनार्थं संकल्पं प्रदर्शयति। इयं भाषा भारतवर्षस्य जीवन दर्शनम् विश्वस्य कृते प्रेरयति। इदं एव पंचतंत्रस्य श्लोके वर्णितम् अस्ति।

अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ।।
संस्कृतज्ञ: संपूर्णं विश्वं स्वकुटुबं इव स्वीकरोति इयमेव उदारभावना अस्माकम् ग्रंथेषु वर्णिता अस्ति।

विश्वस्य विभिन्नेषु देशेषु या प्रतिस्पर्धाभावना अद्यदृश्यते सा अशांते: कारणात् अस्ति। परम् भारतवर्षम् संपूर्णं देशं विश्वं वा सर्वेभवंतु सुखिन:सर्वे संतु निरामया:इति भावनाया: कल्पनाम् करोति।
अहम् प्रसन्न: अस्मि यत् ऐतिहासिक रूपेण अपि देवभूमे: उत्तराखंडस्यसंस्कृतेन सह अत्यधिक: दृढ: संबंध: अस्ति। अस्या: वैशिष्टेन सह पुराणेषु अपि उत्तराखंडे भगवता श्रीकृष्णेन स्वकीय पवित्र दर्शानार्थम् वर्णनं कृतम् अस्ति।

गच्छोद्धव मयादिष्टो बदर्याख्यम् ममाश्रमम् ।
तत्रमत्पादतीर्थोदे स्नानोस्पर्शनै: शुचि: ।।

एतन मात्रं न अपितु बद्रीकाश्रमत उपर्रिभागे महर्षि वेदव्यासस्य एकं प्रतिष्ठितं स्थानं अस्ति यत् व्यासगुफा इति नाम्ना एव ज्ञायते। तत्रं वेदव्यासेन अष्टादश पुराणानाम् रचना विहिता अस्ति। आदि जगत गुरु शंकराचार्येणापि केरल प्रदेशतपदातिरेव यात्राम् विधाय उत्तराखंडस्य ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) इति स्थानम् आगत्य भाष्य ग्रंथस्य रचना विहिता। तथा च स्वकीयस्य मठाम्नायस्य ज्योतिर्मठस्य प्रथमरूपेण स्थापना विहिता।

संस्कृतस्य महान् साहित्यकारेण कालिदासेनापि उत्तराखंडस्य पवित्राम् भूमिम् देवभूमि रूपेण वर्णितम् अस्ति। अस्यैव प्रदेशस्य कोटद्वार इति स्थाने अभिज्ञानशाकुंतलम वर्णितम् कण्वऋषै पवित्राश्रमम् स्थितं अस्ति। यत्र कण्वाश्रम रूपेण अद्यापि जन: श्रद्धां धारयंति।

संक्षेपतउत्तराखंडम देवभूमि इति पवित्र शब्देन सह देववाणीम संस्कृतम अपि स्वकीय भौगोलिक स्थित्या सह विभूषयति। एभि: कारणै: उत्तराखंडम् देवभूमिरिति महत्वं विलोक्य संस्कृतम् द्वितीयं राजभाषारूपेण विराजते।  

एतादृशे काले यदा विश्वस्य विभिन्नाषु भाषासु काठिन्यं अनुभूयते तदा संस्कृतं विश्वस्य सर्वोत्कृष्टा भाषा अस्ति। कर्नाटकेमट्टूर नामके ग्रामे सर्वे ग्रामवासिन: संस्कृतेनैव संभाषण कुर्वंति। तत्र ते सर्वे स्वकीयं दैनन्दिनम् कार्यं संस्कृते नैव कुर्वंति।

एतादृशम् एव उत्तराखंडसर्वाकारेण् एकम् अद्वितीय कार्यं विहितम अस्ति। यत् विभिन्नेषु विभागेषु पट्टिकालेखनम् संस्कृतेनैवस्यात् यथा राज्यस्य ऋषिकेशे नगरपालिका प्रशासनेन स्वकीयेषु विभागेषु सर्वा:लेखा: संस्कृतेनैव लिखिता: संति। संस्कृत विश्वविद्यालयेअपि आचार्या: छात्रा: कर्मचारिण: संस्कृतेनैव सर्वाणिकार्याणि संपादयंति। एतादृशम् एव विभिन्नेषु संस्कृत विद्यालयेषु संस्कृतस्य वातावरणम् दृश्यते अहं विश्वासपूर्वकं वदामि यत्नातिदूरं अस्ति यदा संपूर्णे उत्तराखंडे संस्कृतम् जनभाषारूपेण प्रतिष्ठिता भविष्यति।

अद्य विश्वभूमंडलीकरणे अस्माकम् प्राचीनतम भाषाया: संस्कृतस्य समक्षे बहव: समस्या: संति। अद्य संगणक युगे तथा च दूरभाषायंत्रस्य आधिक्ये संस्कृतम् कथम् व्यावहारिकी भाषा भवेतअस्मिन् विषये विचारस्य आवश्यक्ता अस्ति।

यथा च विश्वस्य जलवायुपरिवर्तनार्थम् प्रदूषणार्थम् भूमंडलीकरणार्थम् तथा च आतंकवादस्य विभिन्न विषया: विश्वस्य पटले संति। संस्कृतस्य विद्वांस:अस्याम् संस्कृभाषायाम् सम्यक् गभीरतया विचारणेन अनुसंधानम् कुर्यु: यत् आधुनिक विचारै: इयं भाषा संपूर्णे विश्वे अपि एता: समस्या: निराकरणार्थम किंचित् सामार्थ्ययुक्ता भविष्यति।
अहम विश्वासं करोमि यत् भवत् सदृशै: विद्वदभि: प्रयासै तथा च सहयोगेन् संस्कृतभाषा पुन: एकबारम् विश्वस्य मूर्धनि आरोहम् प्राप्स्यति।


हिमालय दिवस के असर पर 9 सितंबर को दैनिक जागरण में प्रकाशित मेरा आलेख

हिमालय मात्र एक भौगोलिक संरचना नहीं बल्कि यह भारत का ढाल है। यह हमारी संस्कृति और सभ्यता का उद्गम स्थल है हिमालय देश दुनिया की संस्कृतिदर्शनऔर जीवन यापन को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक है। 2500 किमी लम्बा और करीब 300 किमी चौड़ाई में फैला हिमालय हमारे लिए कई मायने रखता है। इतिहास से लेकर भूगोलविज्ञानजीवन यापन और पारिस्थितिकी तंत्र सबकुछ हिमालय के इर्द गिर्द ही घूमते हैं। देश का 65 प्रतिशत पानी हिमालयी नदियों की ही देन है जिसमें गंगा,यमुना और ब्रह्मपुत्र प्रमुख हैं। सच तो यह है कि हिमालय देश की प्यास बुझाने  से लेकर खेतीबाड़ी के पानी का भी स्रोत है। लगभग देश का 65 फीसदी पानी हिमालय की देन है।

देश के 12 राज्यों का लाख वर्ग किमी क्षेत्र हिमालय के क्षेत्र में आता है। इसी हिमालय से देश की 11 मुख्य नदियां व सैकड़ों छोटी सहायक नदियांनिकलती हैं और ये नदियां देश की जीवन रेखा हैं। हिमालय न सिर्फ कृषि के लिए जलवायु को उपयुक्त बनाता हैबल्कि इसकी जलवायु मिट्टी को भीउपजाऊ बनाती हैइस तरह हरित क्रांति में भी हिमालय का खास योगदान रहा है।देश की अमूल्य वन संपदा हिमालय में बसती है। देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र में से 67 फीसदी भूभाग हिमालय में है। यहीं से हमें  अविरल जल और हवा मिलती है।। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तराखंड का 47 फीसदी से ज्यादा हिस्सा वनों से ढका हुआ है। उत्तराखंड उत्तर भारत का इकलौता राज्य है जहां 71 फीसदी से ज्यादा फॉरेस्ट कवर है।

यह ही नहीं सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि हिमालय सदियों से बाहरी ताकतों से हमारी रक्षा करता आ रहा है। इसलिए इसे देश का रक्षक भी कहा जाता है।
हिमालय दिवस पर सतत पर्वतीय विकास सम्मेलन को संबोधित करते हुए
मगर दूसरी तरफ  जैसे जैसे हम विकास की दौड़ में आगे बढ़ेहमसे हिमालय की अनदेखी शुरू हुई। देश के आर्थिक और सामाजिक उत्थान में हिमालय के उपकारों को हम नजरअंदाज करते गए। सदियों से हमारा पालन पोषण करने वाले हिमालय पर हमारे ही कारण संकट मंडराना शुरू हुआ।
पिछले दो दशको से होने वाली तमाम घटनाये इसी ओर संकेत कर रही है। आज पारिस्थितिकी हमें  ये सोचने को मजबूर कर चुकी है कि हम सबको मिलकर हिमालय के  संरक्षण के बारे में गंभीरता से प्रयास करने होंगे। इसी भावना ने हिमालय दिवस जैसे मुददे  को  जन्म दिया।

इसमें कोई शंका नहीं कि हिमालय क्षेत्र में मानव हस्तक्षेप से पर्यावरणीय संतुलन गड़बड़ाया है।  इसके कारण ना सिर्फ हिमालयी ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघलें हैंबल्कि यहां की अनेक वनस्पतियों तथा वन्य जीवों की प्रजातियां भी विलुप्त होती जा रही हैं। संसदीय पैनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र के 968 ग्लेशियरों पर ग्लोबल वर्मिंग का साफ तौर पर प्रतिकूल असर हुआ है। वाडिया हिमालयन इंस्टिट्यूट देहरादून  ने अपने अध्ययन में इसी और इशारा किया है। अकेले उत्तराखंड में १४ ग्लेशियर पर संकट पड़ चूका हैं। इनमे ग्लोबल वार्मिंग व् जलवायु परिवर्तन का सीधा असर दिखाई देता हैं । साफ़ सी बात है नदियों का अस्तित्व इन हिमखंडो से जुड़ा हैं । और इनके बिगड़ते हालातों का सीधा मतलब देश दुनिया के जनजीवन पर पड़ना तय हैं।

हमें यह भी स्वीकारना होगा की यहाँ के वनों पर किसी न किसी रूप में लगातार खतरे आये  ही है। हर वर्ष लगने वाली आग सैकड़ो हेक्टेयर वनों को लील लेती हैं । हाल में यह एक बड़ी चिंता के रूप में उभरा हैं । वनाग्नि वनों के अलावा वन्यजीवों के संरक्षण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं । हमने वनों के अलावा वन्य जीव व प्रजातियों को भी गत दशको में खोया हैं। हिमालय एक नए संकट के बीच में ही घिरता जा रहा हैं । जिसकी ताल केदारनाथ त्रासदी के साथ ठुकी । हर वर्ष अब हिमालय को बाढ़ भूस्खलन के कारण बड़े रूप में जान माल का नुक्सान भी झेलना पड़ रहा हैं। और इन सबका असर हिमालय की खेतीबाड़ी पर पड़ा हैं । आज हिमालय के गाँवों  की सीधी निर्भरता खेती से ही जुडी हैं । उत्तराखंड में अकेले खेती भूमि का दायरा घटकर 7 करीब 7 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसमें से इसमें 3.10 लाख हेक्टेयर मैदानी और 3.90 लाख हेक्टेयर पर्वतीय है। और इस कृषि भूमि पर 75 फीसदी राज्य की आबादी निर्भर करती हैं । यह बात मात्र उत्तराखंड की ही नहीं बल्कि सभी हिमालयी राज्यों की हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि खेती राज्यों को खाद्य सुरक्षा तो देती हैं और साथ में बड़े रोजगार का कारण भी बनती हैं। हिमालय से जुडा एक और रोजगार जिसे समझने समझाने की कोशिश होनी चाहिए।  वो इसके पारिस्थिकी संरक्षण से जुडा हैं। मसलन वनोंन्नतिजल व् मृदा संरक्षण को रोजगार से जोड़ने होंगे। क्योंकि जहाँ ये एक तरफ हिमालय की आवश्यकता के अनुरूप पारिस्थितिकीय रोजगार बनेगे वही दूसरी और इन उत्पादों से रॉयल्टी के रूप में लोगो को सीधा लाभ प्राप्त होगा। और हिमालय के सतत विकास की परिकल्पना भी साकार होगी।

सब तरह की हिमालयी घटनाएँ एक ही तरफ इशारा करती हैं कि अब सामूहिक जिम्मेदारी का समय है। हिमालय के पूरे राज्य उनकी सरकारें  व सामाजिक आन्दोलन से जुड़े लोगों को एक मंच पर इन चुनोतियों के मंथन के लिए जुड़ने का अवसर हिमालय दिवस देता हैं । और इस प्रयास को केंद्र सरकार के साथ जोड़कर हिमालयी ढांचे की बेहतरी के लिए एकजुट होकर कार्य करने का संयोग भी प्रदान करता है । हम आज तक हिमालय के प्रति पूरी तरह से गंभीर नहीं हो पाए हैं और यही कारण हैं कि हिमालय जहाँ पारिस्थिकीय रूप में डगमगा रहा हैं  वहां ही इसके जनजीवन पर सीधा प्रतिकूल असर पड़ रहा हैं । हिमालय के खाली होते सीमान्त गाँव चाहे उत्तराखंड हो या हिमाचल प्रदेश या अरुणाचल प्रदेश या जम्मू कश्मीर। एक असुरक्षा की भावना को स्थान दे रहा हैं । सीमान्त क्षेत्रो की बसावट मात्र एक रक्षा के ही रूप में नहीं देखी जा सकती बल्कि देश की संस्कृतिलोकाचार और साहित्य का भी हिस्सा होती है।

हिमालय की अपारता को समझना ही हिमालय दिवस का सन्देश हैं और यह सन्देश मात्र हिमालय के लोगो के लिए ही नहीं बल्कि उन सभी देशों व राज्यों का है जो इसके उपकारों का अभी तक ऋण नहीं चुका पाए है ।
हिमालय के महत्व को समझते हुए उत्तराखंड के लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी अपने गीत में हिमालय के चिरंजीवी होने की कामना की है।

परबतूं कि शान छै, मान अभिमान छै
सैरा मुलुकौ ताज छै तू...
हिमालय जुगराज रै तू
पंडित ज्ञानि कु ज्ञान, ऋषि मुनि को छई ध्यान
त्वे मा ही रच्या बस्यान हमरा वेद अर पुराण
देवतौं कू वास छै तू...
हिमालय जुगराज रै तू...

इसलिए हिमालय ही वो जगह है जहाँ से संकल्प भी लिया जा सकता है और सिद्धी भी प्राप्त की जा सकती हैं ।


Monday 18 September 2017

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी का देवभूमि आगमन पर हार्दिक अभिनंदन


माननीय अमित भाई शाह जी, सर्वप्रथम मैं आपका देवधरा उत्तराखंड में हार्दिक अभिनंदन करता हूं। ये माननीय प्रधानमंत्री की विश्वसनियता और आपके सांगठनिक कौशल का ही परिणाम है की आज संपूर्ण भारत वर्ष में जहां भी देखो कमल ही कमल नजर आता है। आपके आदर्श वाक्य संपर्क और संगठन के प्राण हैं, यदि हम इसे गवां देते हैं, तो संगठन से प्राण चला जाता है को हम सबने आत्मसात किया है। सत्ता और शासन सुख भोगने के लिए नहीं होता, यह तो दबे, पिछडे एवं गरीबों के कल्याण और सेवा के लिए होता है को हम शिरोधार्य कर दिन रात जनता की सेवा में लगे हुए हैं। हम सबके लिए इससे बड़े गौरव की बात और क्या होगी की भारतीय जनता पार्टी भी आज देश ही नहीं, विश्व में सबसे ज्यादा कार्यकर्ताओं वाली पार्टी बनकर खड़ी हुई है।

आपने कभी चुनौतियों को बाधा नहीं बनने दिया बल्कि हमेशा उसे एक अवसर के तौर पर लिया। हम सब जानतें हैं की राष्ट्रीय राजनीति में पहले ही दिन से आपकी अग्निपरिक्षा शुरू हो गई। देश के सबसे बड़े राज्य का प्रभारी का जिम्मा मिला। नामुमकिन लगने वाले काम को आपने पूरा कर दिखाया। आज आपके कार्यकाल को 3 साल से ज्यादा हो गए हैं। इस दौरान पार्टी का न सिर्फ जनाधार बड़ा बल्कि कई राज्यों में बीजेपी की सरकार बनी। आज पार्टी की 13 राज्यों में सरकार हैराज्यों में वह गठबंधन में है। 1350 विधायक और 330 सांसद और 11 करोड़ कार्यकर्ताओं के चलते बीजेपी दुनिया की सबसे बडी पार्टी है। 2014 से प्रधानमंत्री के तौर पर मोदी जी ने और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर आपने  नेतृत्व संभाला और संपूर्ण देश में मनसा वाचा कर्मणा का भाव जागृत किया।

आपने संगठन की न सिर्फ अहमियत बढ़ाई बल्कि संगठन और सरकार के बीच जबरदस्त सामंजस्य बैठा दिया। आप में जो सबसे बड़ी खूबी है कि वो फैसले लेने से आप कभी नहीं हिचकते। आपके फैसलों ने न सिर्फ राजनीतिक पंडितों के चौंकाया बल्कि विपक्षियों को भी चारों खाने चित्त कर दिया। मिस्ड कॉल देकर संगठन को जोड़ने की अद्भुत कला के जरिए आपने आज पार्टी के साथ 11 करोड़ से ज्यादा कार्यकर्ता जोड़े हैं।

बीजेपी की विचारधारा और मोदी सरकार की नीतियों से जन जन के साथ जोड़ने का काम किया। मोदी सरकार की लोक-कल्याण नीतियों खासकरजन-धन योजनाजन-सुरक्षा योजनाफसल बीमा योजनामुद्रा योजनास्वास्थ्य बीमाप्रधानमंत्री उज्ज्वला योजनास्वच्छता अभियानपंडित दीनदयाल ग्राम विद्युतीकरण योजना सहित‘बेटी बचाओबेटी पढाओअभियान को बेहतर तालमेल के साथ जन जन तक पहुंचाया। सर्जिकल स्ट्राइकनोटबंदीजीएसटी और काले-धन के खिलाफ केंद्र सरकार के अभियान को लोगों में बेहतर तरीके से प्रचारित किया।

अमित भाई जानते हैं की चुनाव का मैदान मारने के लिए बूथ का प्रबंधन जरूरी होता है। उन्होंने बिना समय गंवाए संगठन को मजबूत करना शुरू किया। आपके  नेतृत्व में कच्छ से लेकर कामरूप तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक चारों दिशाओं में बीजेपी का बिगुल बजने लगा।

यह आपकी ही रणनीति का ही हिस्सा था कि पहली बार पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए व्यापक स्तर पर राष्ट्रीयराज्यजिला और ब्लॉक स्तर पर प्रशिक्षण शिविर लगाए गए। लगभग 8 लाख से भी अधिक कार्यकर्ता इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों से जुड़े। जिला स्तर और ब्लॉक स्तर पर बीजेपी के दफ्तर को डिजीटल तकनीक से लैस किया ताकि पार्टी नेतृत्व और कार्यकर्ताओं के बीच सार्थक संवाद हो और पारदर्शिता बनी रहे।

आपने मेहनत करके दिखाया कि पार्टी को कहां तक विस्तार दिया जा सकता है।  संगठन को विस्तार देने के लिए 110 दिनों का विस्तृत प्रवास कार्यक्रम शुरू किया। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मशती वर्ष में हर बूथ पर पार्टी को मजबूत बनाया। नतीजा आज चार लाख से अधिक कार्यकर्ता 15 दिनछह महीने और साल भर के लिए पूर्णकालिक के रूप में देश भर में बूथ-स्तर पर पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।  

अमित भाई शाह जी, आपके नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी नित नई बुलंदियों को छूती जा रही है। अपने प्रवास कार्यक्रम की इसी कड़ी में आज आप उत्तराखंड आए हैं, आपका सभी कार्यकर्ताओं की ओर से पुनः अभिनन्दन। उम्मीद करता हूं कि देवभूमि के लोगों की मेहमान नवाजी और आत्मीयता से आप अभिभूत होकर जाएंगे।

धन्यवाद।

त्रिवेंद्र सिंह रावत
मुख्यमंत्री, उत्तराखंड



गंगा आर्ट मैराथन

नमामि गंगे मिशन के तहत ऋषिकेष में गंगा तच पर गंगा आर्ट मैराथन में कलाकारों की कलाकृतियों ने मन मोह लिया। कलाकारों ने अद्भुत पेंटिंग के जरिए गंगा संरक्षण का संदेश दिया।  कुछ कलाकृतियां साझा कर रहा हूं।