Wednesday, 17 July 2019

हरेला पर्व का ग्लोबल संदेश


जी रयां जागि रयां
आकाश जस उच्च, धरती जस चाकव है जयां
स्यावै जस बुद्धि, सूरज जस तराण है जौ
जाँठि टेकि भैर जया दूब जस फैलि जयां

मेरे प्यारे उत्तराखंडवासियों, आप सभी को प्रकृति पर्व हरेला की बहुत बहुत शुभकामनाएं।

जैसा कि आप जानते हैं, हरेला पर्व हमारी लोक संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। यह पूरे उत्तराखंड में, विशेषतौर पर कुमायूं क्षेत्र में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

यहाँ के लोग प्रकृति के बेहद नजदीक हैं। प्रकृति को अपनी दिनचर्या, तीज त्यौहार, और संस्कृति में समाहित करते हैं। हरेला हमारी लोकपरम्परा से जुड़ा पर्व है। हरेला सावन लगने से 9 दिन पहले बोया जाता है। मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, फसल भी उतनी ही अच्छी होगी, इसलिए हरेले को किसानों की सुख समृद्धि की कामना के तौर पर भी देखा जाता है।



दुनिया में हरेला शायद ऐसा एकमात्र त्योहार होगा जिसमें जीवों के कल्याण के साथ साथ प्रकृति संरक्षण की कामना भी की जाती है। पेड़ लगाने और पर्यावरण बचाने की संस्कृति की ऐसी सुंदर झलक देवभूमि उत्तराखंड में ही दिखती है।

जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वर्मिंग की समस्या से आज दुनिया भर के देश चिंतित हैं। इनके असर को रोकने के लिए सभी जरूरी प्रयास तलाशे जा रहे हैं। ये प्रयास प्रकृति और पर्य़ावरण संरक्षण के बिना संभव नहीं हो सकते। इसलिए अगर आप हरेला पर्व के संदेश पर बारीकी से गौर करें तो इन समस्याओं का हल मिल जाता है। उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला पूरी दुनिया को ग्लोबल वर्मिंग के खिलाफ लड़ने का संदेश देता है।



हरेला सुख-समृद्धि व जागरूकता का प्रतीक है। हमारे पूर्वजों ने वृक्षों को बचाने के लिए अनवरत प्रयास किये और हमारी पीढ़ी को स्वस्थ सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने मे सहयोग किया। इसी तरह आने वाली पीढ़ी को अच्छा पर्यावरण देने के लिए हमें भी संकल्प लेना होगा। हरेला के अवसर पर इस बार प्रदेश भर में वृहद स्तर पर वृक्षारोपण किया जा रहा है। इस बार हरेला पर्व पर 6.25 लाख पौधे लगाये जा रहे हैं। समाज के सभी वर्ग, बच्चे, बुजुर्ग, युवा, महिलाएं, छात्र, किसान, कामगार, सभी प्रकृति के करीब ले जाने वाले हरेला त्योहार की इस खास मुहिम से जुड़ रहे हैं।



जैसा कि माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा है कि जिस तरह स्वच्छता को एक जन आंदोलन का रूप दिया गया, उसी तरह जल संरक्षण के लिए जन आंदोलन की शुरुआत हो। जीने के लिए स्वच्छ प्राणवायु और पीने के लिए साफ पानी, इन दोनो के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए हरेला के अवसर पर हम सभी संकल्प ले सकते हैं कि हम अपने ससाधनों के रखरखाव की जिम्मेदारी लेंगे। पिछले वर्ष जल संरक्षण की दिशा में हमने कई प्रयास किए जिस कारण से 2018-19 में 33.4 करोड़ लीटर जल संचय करने में सफलता हासिल की। इस दौरान 11221 चाल खालों का निर्माण, 2824 जलकुंडों का निर्माण, 500 चैकडैम और 4.2 लाख कंटूर ट्रैंच बनाए गए। इन सभी प्रयासों से पानी बचाने में सफल रहे।

हरेला आपको एक अवसर देता है कि आप प्रकृति को करीब से जानें, जिस प्रकृति में आप पले बढ़े हैं उसका कर्ज चुकाने की छोटी छोटी कोशिशें करें। इस वर्ष हरेला पर आप सभी का ये उद्देश्य होना चाहिए कि कम से कम एक पेड़ जरूर लगाएंगे, साथ ही चाल खाल या अन्य तरीकों से एक एक बूंद पानी की बचाएंगे। हमारे आज के प्रयास हमारी कल की पीढ़ियों के लिए वरदान साबित होंगे।

धन्यवाद।






Tuesday, 19 March 2019

सेवा भाव के दो साल



मुझे इस बात का पूर्ण संतोष है कि देवभूमि उत्तराखंड की सेवा करते हुए हमारी सरकार ने दो वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। हमारा मानना है कि पारदर्शिता और जवाबदेही तय कर ही सुशासन का फायदा जन जन तक पहुंचाया जा सकता है।

हमारे सामने उत्तराखंड में भ्रष्चाटार एक बड़ी चुनौती है इसलिए हमने प्रधानमंत्री मोदी जी के जीरो टॉलरेंस मंत्र को आत्मसात किया है। एनएच-74 घोटाले से लेकर समाज कल्याण विभाग की अनियमितताओं पर सख्त कदम उठाए हैं। ट्रांसफर पोस्टिंग उत्तराखंड में उद्योग की तरह चलता था, हमने ट्रांसफर एक्ट लाकर इस धंधे को बंद किया है।मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूँ कि हम भ्रष्चाटार से कोई समझौता नही करेंगे। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई हम सबको मिलकर लड़नी होगी, तभी हम अपने भविष्य को सुरक्षित रख पाएंगे।

सर्वे सन्तु निरामयाः का भाव हमारी संस्कृति में निहित है। मगर पहाड़ों में स्वास्थ्य सुविधाएं हमारे लिए चुनौती थी। हम जानते हैं कि पहाड़ों में आज भी लोगों को उचित इलाज के लिए दर दर भटकना पड़ता है। महिलाओं को गहने तक बेचने पड़ते हैं, किसान जमीन गिरवी रख देते हैं। मैंने इन हालातों को नजदीक से देखा है इसलिए प्रधानमंत्री जी की आयुष्मान भारत योजना से प्रेरणा लेकर, वित्तीय संसाधनों की फिक्र किए बिना संपूर्ण प्रदेशवासियों के कल्याण के लिए अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना को लागू किया। इस योजना से प्रदेश के समस्त 23 लाख परिवारों को सालाना पांच लाख रुपए तक निशुल्क इलाज मुहैया करवाया जा रहा है। मुझे खुशी है कि अब तक करीब 14 हजार लोग अटल आय़ुष्मान योजना से निशुल्क इलाज करवा चुके हैं, जिस पर 13 करोड़ रुपए व्यय हुए हैं। इसी तरह 2160 लोग आयुष्मान भारत का लाभ ले चुके हैं।

मेरे प्यारे उत्तराखंड वासियों,
शांत सुरक्षित माहौल, एक मजबूत बुनियादी ढांचा, कुशल मैनपावर, व्यवहारिक नीतिगत फैसले राज्य को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। उत्तराखंड में ये सबकुछ था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के चलते ब़डे पैमाने पर निवेश लाने की कोशिश नहीं की गई। इसी को ध्यान में रखते हुए हमने पहली बार इन्वेस्टर्स समिट का सफल आयोजन करवाया जिसमें सवा लाख करोड़ रुपए के एमओयू साइन किए गए। पिछले 17 साल में उत्तराखंड में कुल मिलाकर 40 हजार करोड़ रुपए का निवेश आया था। मुझे खुशी है कि पिछले पांच महीनों में ही हम 13 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर चुके हैं। इस साल के अंत तक 20 हजार करोड़ के प्रोजेक्ट धरातल पर उतर जाएंगे। इससे रोजगार के बंपर अवसर पैदा होंगे। मैं कह सकता हूँ, एक समृद्ध उत्तराखंड के निर्माण की नींव रखी जा चुकी है।


आज उत्तराखंड में इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ रहा है। केंद्र सरकार के सहयोग से रोड़रेल और एयर कनेक्टिविटी मजबूत हुई है। ये डबल इंजन सरकार का असर है कि उत्तराखंड में आज 12 हजार करोड़ रुपए की ऑल वेदर रोड का प्रोजेक्ट चल रहा है। 10 हजार करोड़ रुपए की भारतमाला परियोजना का काम चल रहा है। 4700 करोड़ रुपए की लागत से प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना पर काम चल रहा है। 16 हजार करोड़ से ज्यादा की कीमत की ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन पर काम चल रहा है। राज्य में विभिन्न नेशनल हाइवे के निर्माण पर 9 हजार करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं।

33 हजार करोड़ रुपए की पंचेश्वर बहुद्देश्यीय परियोजना पर काम चल रहा है। लखवाड़ परियोजना पर 4 हजार करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं केंद्र सरकार के सहयोग से सहकारिता विकास के लिए 3340 करोड़ रुपए की राज्य समेकित सहकारिता परियोजना शुरू की गई है। इससे 55 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा।  प्रदेश में ऑर्गैनिक खेती के विकास पर केंद्र से 1500 करोड़ रुपए की मदद मिल रही है। करीब 8 हजार करोड़ रुपए की लागत से नमामि गंगे के प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है।
बेहतर शिक्षा और रोजगार बढ़ाना हमारी पहली प्राथमिकता रही है। केंद्र सरकार के सहयोग से सहकारिता विकास के लिए 3340 करोड़ रुपए की राज्य समेकित सहकारिता परियोजना शुरू की गई है। इससे 55 हजार लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा। हमने पर्यटन के क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजित करने के लिए पॉलिसी में बदलाव किए हैं। पर्यटन को उद्योग का दर्जा देकर एडवेंचर टूरिज्म के क्षेत्र में हजारों युवाओं को रोजगार देने के प्रयास हो रहे हैं। 13 जिलों में 13 नए थीम बेस्ड डेस्टिनेशन स्थापित किए जा रहे हैं। ग्रामीण पर्यटन को मजबूती देने के लिए 5000 नए होमस्टे बना रहे हैं। निवेश के प्रोजेक्ट्स से एक साल के भीतर 20 हजार लोगों को रोजगार मिलने वाला है। पिछले दो साल में हमने सरकारी नौकरियोंआउटसोर्ससंविदा और प्राइवेट सेक्टर में कुल मिलाकर ढाई लाख युवाओं को रोजगार मुहैया करवाया है। हम उत्तराखंड को हायर एजुकेशन का हब बनाना चाहते हैं। हमारे प्रदेश में IIM, IIT AIIMS जैसे संस्थान पहले से थे, अब सिपैट की स्थापना से युवाओं के करियर को नई दिशा मिली है। राज्य में पहली नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी का शिलान्यास हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में क्वालिटी एजुकेशन के लिए दो मॉडल कॉलेजों व एक वोकेशन कॉलेज की स्थापना की जा रही है। साइसं सिटी स्थापित हो रही है।

किसान भाइयों का कल्याण हमारी सोच का केंद्रबिंदु हैं।माननीय प्रधानमंत्री जी के सहयोग से किसानों की आय बढ़ाने और इनकम सपोर्ट देने के प्रयास किए जा रहे हैं। इनकम सपोर्ट के लिए किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6 हजार रुपए सालाना सीधे किसानों के खाते में जा रहा है। प्रदेश के 92 फीसद किसान इस योजना के पात्र हैं। हमारी सरकार किसानों को बिना ब्याज के कृषि ऋण उपलब्ध करा रही है, कृषक समूहों को भी बिना ब्याज के पांच लाख रुपए तक का ऋण दिया जा रहा है। फार्म मशीनरी बैक से कृषि उपकरणों की खरीद पर 80 फीसदी सब्सिडी दी जा रही है। हमने समय से गन्ना किसानों के बकाया राशि का 100 प्रतिशत भुगतान किया है। गेंहूं की खरीद पर किसानों को 20 रुपए प्रतिकुंतल का प्रोत्साहन दिया जा रहा है।

महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। देवभोग प्रसाद योजना से महिलाएं सशक्त बन रही हैं. केदारधाम में महिलाओं ने पिछले यात्रा सीजन में डेढ़ करोड़ का प्रसाद बेचकर अच्छी खासी कमाई की।

महिला समूहों को उद्यमिता के लिए बिना ब्याज के ₹5 लाख तक का ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। एकल महिलाओं के लिए सखी ई रिक्शा योजना चलाई जा रही है। महिला सुरक्षा की दृष्टि से पैनिक बटन की शुरुआत की गई है।

कुल मिलाकर दो साल में हमारी सरकार ने एक समृद्ध उत्तराखंड के निर्माण की ओर कदम बढ़ाए हैं। मुझे उम्मीद है आपके प्यार और आशीर्वाद से हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करेंगे।

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Monday, 31 December 2018

2018 के बुलंद फैसलों से उज्जवल होगा 2019




मेरे प्यारे उत्तराखंड वासियों,
नूतन वर्ष 2019 आप सभी के जीवन में सुखशांतिसमृद्धि और वैभव लेकर आए और ये प्रदेश समृद्धि की ओर अग्रसर रहे, ऐसी मैं बाबा केदारनाथ जी से प्रार्थना करता हूं।

मेरे प्यारे प्रदेशवासियों,
जिस दिन से आपने मुझे इस राज्य की सेवा का मौका दिया है मैं इसे एक पावन व्रत समझकर मन वचन कर्म से इस धर्म को निभाने की कोशिश कर पा रहा हूं। वर्ष 2018 विकास की दृष्टि से उत्तराखंड के लिए बेहद सफल रहा है। वर्ष 2018 में समाज के हर वर्ग के उत्थान के लिए प्रयास किए गए हैं। साल 2018 में हमने उत्तराखंड के उत्थान और आम आदमी के कल्याण के लिए कई संकल्प लिए और उन्हें धरातल पर उतारने की सफल कोशिश भी की है। लेकिन चार प्रमुख कार्य ऐसे हैं जो मैं मानता हूं कि 2018 में हमारी सरकार के सबसे बड़े फैसले थे।


1. अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाएं गरीब से गरीब और अमीर से अमीर व्यक्ति तक सहजता से पहुंच सकें। कोई भी व्यक्ति धन के अभाव में उचित उपचार का मोहताज न रहेइलाज के लिए किसी महिला को अपने गहने या जमीन गिरवी न रखनी पड़े। इसके लिए हमने एक अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना की शुरुआत की। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने देश के 10 करोड़ परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने के लिए आयुष्मान भारत योजना शुरू की। इस योजना से उत्तराखंड को भी बड़ा फायदा मिला और राज्य के 5.37 लाख गरीब परिवार इसके दायरे में आए। लेकिन उत्तराखंड में लाखों परिवार ऐसे हैंजो न तो गरीबी रेखा से नीचे हैं और न ही धनाड्य वर्ग में आते हैं। झुग्गी झोपड़ी और मलिन बस्तियों में रहने वाले कई परिवार ऐसे हैंजो सरकारी योजनाओं का समुचित लाभ नहीं ले पा रहे हैं। इस तरह से उत्तराखंड की आबादी का बड़ा हिस्सा आयुष्मान भारत जैसी योजना का लाभ नहीं ले पा रहा था। इसलिए हमने मोदी जी की प्रेरणा से प्रदेश के सभी 23 लाख परिवारों को सालाना पांच लाख रुपए तक की निशुल्क स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान की है। अटल आयुष्मान योजना के जरिए प्रदेश का कोई भी परिवार सूचीबद्ध अस्पतालों में साल में पांच लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज करवा सकेगा। गरीब से गरीब लोगों को वर्ल्ड क्लास प्राइवेट अस्पतालों में इलाज की सुविधा मिलेगी। मैं मानता हूं कि सर्वे भवंतु सुखिन: की हमारी सोचइस योजना से काफी हद तक पूरी हो सकेगी।

2. निवेश का पसंदीदा डेस्टिनेशन उत्तराखंड
पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में व्यापक निवेश आकर्षित करने के लिए उद्योगों के लिए सरल पॉलिसी बनाई गई है। निवेश के प्रस्तावों को सिंगल विंडो क्लीयरेंस दी जा रही है। हम रेड टेपिज्म से रेड कार्पेट की ओर जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि हमने 7-8 अक्टूबर 2018 को उत्तराखंड में पहली बार इन्वेस्टर्स समिट का सफल आयोजन करवाया। इस समिट के दौरान 1 लाख 24 हजार करोड़ रुपए के निवेश प्रस्तावों पर एमओयू साइन किए गए। आम तौर पर निवेश के प्रस्तावों को धरातल पर उतरने में देर लगती है लेकिन हमने इस पर मिशन मोड में काम कियाबागेश्वर में एक प्रोजेक्ट की शुभ शुरुआत हो चुकी है। इसका नतीजा ये है कि मार्च 2019 तक करीब 30 हजार करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट धरातल पर उतर जाएंगे। निवेश के जरिए पहाड़ी क्षेत्रों में विकास की खाई को पाटने की भरसक कोशिश हुई है। पर्वतीय क्षेत्रों में लघु उद्योगों के लिए 40 हजार करोड़ के एमओयू साइन हुए हैं। मैं यह भी कहना चाहूंगा कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन उद्योगों को दी जा रही है। हमने लोगों की खाली जमीन पर उद्योग स्थापित करने की कोशिश जरूर की है,लेकिन जमीन का मालिकाना हक लोगों के पास ही रहेगा। यानि खाली जमीन पर उद्योगों से पहाड़ में रोजगार के अवसर पैदा होंगे और उनकी जमीन का सदुपयोग भी हो सकेगा। इस तरह से इन्वेस्टर्स समिट आने वाले समय में उत्तराखंड के लिए गेमचेंजर साबित होगी।

3. साकार होता पर्यटन प्रदश का सपना
पर्यटन ऐसा क्षेत्र है जिससे हमारी अर्थव्यवस्था को भारी उछाल मिल सकता है।  पर्यटन के जरिए हमने इस प्रदेश की तस्वीर बदलने की कोशिश की है। हम पहली बार 13 जिलों में 13 नए पर्यटन स्थल विकसित करने पर मजबूती के साथ आगे बढ़े हैं, इसके लिए बजटीय प्रावधान किया जा चुका है। पर्यटन की गतिविधियों को उद्योग का दर्जा देकर एडवेंचर टूरिज्म के स्कोप को मजबूत किया है। टिहरी झील में सी प्लेन उतारने का सपना इसी सोच का नतीजा है जो जल्द साकार होने वाला है। आज उत्तराखंड नेचर, एडवेंचर, योग आध्यात्म औऱ वाइल्ड लाइफ टूरिज्म का कंप्लीट पैकेज बन चुका है। चार धाम यात्रा मार्गों पर व्यवस्थाएं सुचारू की गई, जिसके चलते आपदा के बाद रिकॉर्ड मात्रा में करीब 28 लाख श्रद्धालु इस बार चार धाम यात्रा पर आए। हमने ग्रामीण पर्यटन को संवारने के लिए होमस्टे योजना को मजबूती दी है। आनेवाले समय में 5000 नए होमस्टे बनाने का लक्ष्य रखा गया है। इन सभी गतिविधियों को स्थानीय युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखकर बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि पर्यटन से अधिक से अधिक रोजगार सृजित हो सकें।

4. साफ सुथरा शासन
2018 में प्रदेश में ऐसे कई मामले आए जहां पिछली सरकारों के दौरान घोटालों की बात सामने आई। सड़क निर्माण से लेकर शिक्षागरीबों के राशन वितरण में गड़बड़ीकई बड़े प्रोजेक्ट में घोटालों की आशंका। लेकिन हमने इन सबके खिलाफ डंके की चोट पर पूरी ईमानदारी से काम किया। भ्रष्टाचारियों पर सख्त से सख्त कारवाही की। सिस्टम में पारदर्शिता लाने की पहल की। आज आर्थिक अनुशासन के चलते खननऊर्जापरिवहन जैसे हमारे कई विभाग घाटे से उबर रहे हैं। यह पारदर्शी शासन में ही संभव है कि देहरादून में मोहकमपुर फ्लाईओवर और डाटकाली टनल का निर्माण न सिर्फ समय से पहले पूरा किया गया बल्कि इसमें धन की बचत भी की गई। हमने इन विभागों के राजस्व में बढ़ोतरी की है। ट्रांसफर पोस्टिंग इस प्रदेश में एक धंधा बनकर रह गया थाहमने इस पर चोट की और पारदर्शी ट्रांसफर एक्ट लागू किया। अब पारदर्शी तरीके से ट्रांसफर हो रहे हैं। इसमे बिचौलियों की भूमिका को खत्म कर दिया है। मेरा मानना है कि ये राज्य पावन देवभूमि हैयहां भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इसलिए हम भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर अभी भी सख्ती से कायम हैं। मैं प्रदेश की जनता से भी अपील करता हूं कि इस मुहिम में सहयोग करें।



मेरे प्रदेशवासियों,
मैं मानता हूं कि अभी भी इस राज्य के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। लेकिन हमारी नीयत साफ है और सोच ईमानदार है। हमने प्रधानमंत्री जी के ऑर्गैनिक स्टेट के संकल्प पर बारीकी से काम किया है। हम किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए हर संभव कदम उठा रहे हैं। सस्ता ऋणसस्ते कृषि उपकरणखाद पर सब्सिडीसमर्थन मूल्य में वृद्धि और उत्पादों के लिए बेहतर मार्केट उपलब्ध करवाकर हमने किसानों के लिए बीज से लेकर बाजार तक आदर्श व्यवस्था दी है। प्रदेश की नारीशक्ति के सशक्तीकरण के लिए हमने देवभोग प्रसाद योजना शुरू की। हर न्यायपंचायत पर ग्रोथ सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं। इससे न केवल महिलाओं में कौशल विकास हो रहा है बल्कि वे आर्थिक रूप से सशक्त भी हो रही हैं। उच्च शिक्षा के लिए नए नए कोर्स और संस्थान हमने उत्तराखंड में खोले हैं। स्कूलों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू करके पारदर्शिता लाने की कोशिश की है।

मुझे विश्वास है धीरे धीरे यह राज्य विकास की नई ऊंचाइयों तक अवश्य पहुंचेगा।  मैं माँ नंदा से प्रार्थना करता हूं कि नए वर्ष 2019 में उत्तराखंड का चहुमुखी विकास होराज्य में हर ओर खुशहाली होसमृद्धि हो और प्रत्येक नागरिक का कल्याण हो।
इन्हीं भावनाओं के साथ एक बार फिर से आप सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं देता हूं। धन्यवाद।


Thursday, 8 November 2018

आओ मिलकर बनाएं शहीदों के सपनों का उत्तराखंड

मेरे प्यारे प्रदेशवासियों,
देवभूमि उत्तराखंड राज्य की स्थापना के 18 वर्ष पूर्ण होने पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। सबसे पहले मैं उन ज्ञात अज्ञात शहीदों और आंदोलनकारियों को नमन करता हूँ, जिनके अथक संघर्ष और बलिदान की बदौलत हमको ये राज्य प्राप्त हुआ। देवभूमि उत्तराखंड को वीरभूमि भी कहा जाता है, यहाँ के करीब करीब हर घर से कोई न कोई सेना और अर्धसैनिक बलों में सेवाएं दे रहा है या कार्यरत रह चुका है। इस पावन अवसर पर वीरभूमि की जनता की ओर से मैं तमाम सुरक्षाबलों के जवानों को भी श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ।

भाइयों और बहनों, आप सभी जानते हैं कि यह राज्य पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल जी की देन है। इस अवसर मैं उत्तराखंड की संपूर्ण जनता की ओर से अटल जी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

आज हमारा राज्य 19वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। आप जानते हैं कि यह वह अवस्था होती है, जब कोई भी व्यक्ति अपने सपनों को साकार करने की दिशा में नई उमंगों और दृढ़ संकल्प के साथ कदम बढ़ाता है। उत्तराखंड पर यह लागू होता है। पिछले 18 साल में हमने बहुत कुछ पाया है, बहुत कुछ खोया भी है, लेकिन बावजूद इसके अभी हमें बहुत कुछ हासिल करना है। और मुझे पूरा विश्वास है कि उत्तराखंड जिस तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है, वह दिन दूर नहीं जब हम भारत के अग्रणी राज्यों में शामिल होंगे। राज्य की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय के मामले में हम अन्य राज्यों के मुकाबले तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। सामाजिक तरक्की की दिशा में भी हमने अपनी गति कम नहीं होने दी यही कारण है कि सामाजिक तरक्की के सूचकांक में उत्तराखंड देश का चौथा राज्य है। हमारे राज्य मे प्रगति की पर्याप्त संभावनाएं हैं। यह पर्यटन प्रदेश है, यहां कण कण में प्राकृतिक सुंदरता के साथ देवताओं का वास है। यह ऊर्जा प्रदेश है, यहां कृषि, बागवानी, एरोमैटिक खेती और जैविक खेती की असीम संभावनाएं हैं। अमूल्य वन संपदा होने के कारण यह प्रदेश बायोइकॉनॉमी का केंद्र है।


राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में आपकी सेवा करते हुए मुझे डेढ़ साल से अधिक समय हो चुका है। इस अल्प समय में हमारी सरकार ने तन मन धन से पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ प्रदेश की तरक्की के लिए कई कदम उठाए हैं। मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी है कि पिछले डेढ़ साल में हमने जो भी संकल्प लिए और जो भी वादे प्रदेश की जनता से किए उन्हें क्रमबद्ध रूप से धरातल पर उतार रहे हैं।

यह जानकर आपको हर्ष होगा कि 18 साल मे पहली बार उत्तराखंड में इन्वेस्टर्स समिट का सफल आयोजन किया गया, जिसमें 1 लाख 24 हजार करोड़ रुपए के एमओयू साइन किए गए। बागेश्वर में पहली लीसा फैक्ट्री की शुरुआत के साथ इन्वेस्टर्स समिट के परिणाम हमें मिलने लगे हैं। हम चाहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में प्रचुर संसाधनों का समुचित उपयोग किया जाए, और स्थानीय स्तर पर रोजगार के व्यापक अवसर पैदा किए जाएं, इस दिशा में इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन मील का पत्थर साबित होगा। इसी इनवेसटर्स समिट के दौरान आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने हमें एक मंत्र दिया था, उत्तराखंड को एसईजेड यानी स्प्रिचुअल इकोलॉजिकल जोन बनाना है। प्रधानमंत्री जी के वचनों को आत्मसात करते हुए हम उत्तराखंड के नैसर्गिक सौंदर्य के साथ साथ इसके आध्यात्मिक पहलू को भी संवारते हुए न्यू इंडिया के निर्माण में उत्तराखंड का योगदान देना चाहते है

मेरा हमेशा से मानना रहा है कि राजनीति जनसेवा का माध्यम होना चाहिए और सिस्टम के जरिए समाज को बदलना है तो इसके लिए राजनीतिक शुचिता और पारदर्शिता लाना बहुत जरूरी है। पिछले डेढ़ वर्ष में हमने पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से जो कुछ भी महसूस किया उसे सुशासन के रूप में आपके सामने लाने का प्रयास किया है। पहले दिन से ही हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर दृढ़ता से अमल किया है। इसके सुखद परिणाम अब दिखने लगे हैं। अगर नीतियां पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त होंगी तो निश्चित रूप से विकास धरातल पर दिखने लगता है। हमने कई भ्रष्टाचारियों को जेल पहुंचाया है तो सुशासन से सरकारी सिस्टम की कार्यशैली में बदलाव लाने का भी प्रयास किया है।
पर्यटन उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। रोजगार पैदा करने का सबसे बड़ा जरिया है। सोचिए जिस राज्य के पास 17 पर्वत चोटियां, 51 अलग-अलग संस्कृतियां, 89 छोटी-बड़ी नदियां, 111 सुरम्य झील व ताल, 151 वन्यजीव संपदा से भरपूर स्पॉट और सैकड़ों मठ मंदिर हों वहां पलायन के दंश का क्या काम। इसलिए हमने सबसे पहले पर्यटन को उद्योग का दर्जा देकर इसके विस्तार की संभावनाएं तलाशी हैं। हम 13 जिलों में 13 नए टूरिस्ट डेस्टिनेशन विकसित कर रहे हैं। योग, संस्कृति और आयुर्वेद के जरिए हम इस राज्य को नई पहचान दिलाना चाहते हैं। होम स्टे योजना को बढ़ावा दिया जा रहा है। हमारी ये कोशिश है कि पर्यटन के जरिए ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक से अधिक युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा सके। पर्यटन के साथ साथ हम ग्रामीण कृषि और कास्तकारों को भी मजबूत करने की दिशा में पहल कर रहे हैं। कृषि, पशुपालन, मौनपालन, मछलीपालन, फ्लोरीकल्चर, सगंध पौधों की खेती को प्रोत्साहन दे रहे हैं। मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि पिछले कुछ समय से हमारे युवाओं ने अपने संसाधनों की कीमत पहचानी है और कई युवा शहरों से अपने गावों को आबाद करने के लिए रिवर्स माइग्रेशन कर रहे हैं

हमारी प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं आज भी बड़ी चुनौती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए हम ठोस कदम उठा रहे हैं। टेली मेडिसिन और टेलीरेडियोल़जी तकनीक से दूरस्थ क्षेत्रों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचा रहे हैं। आयुष्मान भारत की तर्ज पर उत्तराखंड के सभी लोगों को 5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज की सुविधा देने के लिए आयुष्मान उत्तराखंड योजना शुरू करने जा रहे हैं। हमने पहली बार प्रदेश में डॉक्टरों की रिकॉर्ड तैनाती की है। पर्वतीय क्षेत्रों की लाइफलाइन इमरजेंसी 108 एंबुलेंस की संख्या बढ़ाई जा रही है। स्वास्थ्य में सुधार के लिए जो भी जरूरी उपाय होंगे, उन्हें निश्चत तौर पर पूरी पारदर्शिता के साथ अपनाया जाएगा।


पिछले डेढ़ वर्ष में हमारी ये कोशिश रही कि प्रदेश का कोई भी गांव, कोई भी घर अंधेरे में न रहे। केंद्र की सौभाग्य योजना के साथ राज्य सरकार के प्रयासों से हमने करीब 80 दूरस्थ गावों को बिजली पहुंचाई है। प्रदेश का सीमांत गांव घेस भी अब बिजली से जगमग हो उठा है। सभी गावों, कस्बों और शहरों में साफ शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है।
हमारा प्रदेश जितनी संभावनाओं से भरा हुआ है, उतनी ही चुनौतियां भी यहां मौजूद हैं। उत्तराखण्ड में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के लिए कई चुनौतयों का सामना करना पड़ता है। यहां कुल भूमि का दो तिहाई वन क्षेत्र है, गंगोत्री से उत्तरकाशी तक करीब 4000 वर्ग किमी क्षेत्र इको सेंसिटिव जोन में आता है। पर्यावरणीय नियम हमें कई बार विकास योजनाओं को आधे में छोड़ देने के लिए विवश करते हैं।
एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह कि हमारे पर्वतीय जिलों और मैदानी जिलों में प्रतिव्यक्ति आय और जिलों की जीडीपी में बहुत बड़ा अंतर है। हमारे 9 जिले पूरी तरह से पर्वतीय क्षेत्र और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले हैं।
पलायन उत्तराखंड की गंभीर समस्या है और इसका सीधा असर राज्य की आर्थिकी पर भी पड़ा है। प्रदेश के अधिकांश पहाड़ी जनपदों में अधिकतर कर्मकार काम की तलाश में पलायन कर चुके हैं। इसके असर से हमारी कृषि जोत घट रही है।
विपरीत मौसम में सड़कों की मरम्मत पर भी काफी खर्च होता है। प्राकृतिक आपदाओं से जालमाल का काफी नुकसान होता है। इससे भी राज्य के राजस्व पर बोझ बढ़ रहा है।
कुल मिलाकर हमारे सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन हमें एकजुट होकर इन चुनौतियों को अवसरों में बदलना है। हम टीम उत्तराखंड की भावना से उत्तराखंड को देश के अग्रणी राज्यों में शुमार करने के लिए प्रयासरत हैं।
अंत में एक बार फिर से मैं आप सभी को राज्य स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं।
धन्यवाद।

Friday, 20 July 2018

नदियों के पुनर्जीवीकरण का जन अभियान

मानव सभ्यता के उद्भव से ही नदियों का जीवन में बड़ा महत्व रहा है। नदियां न सिर्फ हमारी प्यास बुझाती है बल्कि किसी न किसी रूप में हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने में भी सहायक होती हैं। गंगा जमुना के मायके उत्तराखंड में नदियों का क्या महत्व है ये किसी से छुपा नहीं। इसलिए नदियों के प्रति हमारा दायित्व और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है। यह कटु सत्य है कि बढ़ते शहरीकरण और भौतिकतावाद की दौड़ ने नदियों का प्रवाह रोका है। नदियों का दायरा सिमट रहा है।  द्रोणनगरी देहरादून में शिखर फॉल से निकलने वाली रिस्पना नदी कभी इस शहर की शान हुआ करती थी। प्राचीनकाल में इस नदी को ऋषिपर्णा नदी के नाम से जाना जाता था। लेकिन आज रिस्पना दयनीय दशा में है। कल कल बहने वाली नदी आज एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है।


जिस दिन से मुख्यमंत्री के रूप में मुझे इस राज्य की सेवा का मौका मिला, मेरे मन में यह सवाल बार बार उठता रहा, कि आखिर रिस्पना की ये दुर्दशा क्यों। इसके लिए हम सब बराबर जिम्मेदार हैं। इसलिए हमारी सरकार ने संकल्प लिया कि हम उत्तराखंड की नदियों, प्राकृतिक स्रोतों, नौलों, धारों और जलस्रोतों के संरक्षण की दिशा में काम करेंगे। शुरुआत के लिए हमने देहरादून की रिस्पना नदी और अल्मोड़ा की कोसी नदी को पुनर्जीवित करने का मिशन शुरू किया। नवंबर 2017 में मैने रिस्पना के उद्गम स्थल शिखर फॉल पर जाकर मिशन रिस्पना से ऋषिपर्णा का संकल्प लिया था। तब मुझे ये उम्मीद नहीं थी कि हमारी सोच एक जन आंदोलन बन जाएगी। यकीन मानिए आज जिस तरह का सहयोग इस मिशन में मिल रहा है, वो दिन दूर नहीं जब हमारी रिस्पना नदी अपने प्राचीन स्वरूप ऋषिपर्णा में बदल जाएगी।


रिस्पना को बचाने के संकल्प में सबसे पहले हमारे दिमाग में यह बात थी कि वृक्षारोपण के जरिए ही इस नदी को बचाया जा सकता है। इसलिए मानसून सीजन में वृक्षारोपण अभियान शुरू करने से पहले हमने 19 मई 2018 को गड्ढा खोदने का कार्य शुरू किया। इस कार्य में शहर के बच्चों, बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं यानी समाज के हर वर्ग ने बढ़ चढ़कर हिस्स लिया। हमें अंदाजा होने लगा कि यह संकल्प अब केवल सरकार का नहीं रह गया बल्कि यह जन जन का मिशन बन चुका है।रिस्पना की तरह अल्मोड़ा की कोसी नदी को पुनर्जीवित करने के संकल्प पर भी आगे बढ़ते जा रहे हैं। हमारे लोकपर्व हरेला ने हमारी इस मुहिम को और भी बल दिया। हरेला पर्व के अवसर पर 16 जुलाई 2018 को अल्मोड़ा के रुद्रधारी नामक स्थान पर हमने वृक्षारोपण अभियान की शुरुआत की। समाज के हर वर्ग की भागीदारी इस पुनीत मिशन में रही। इसी वजह से मात्र एक घंटे में कोसी के तट पर एक लाख 67 हजार 755 पौधे रोपे गए। इस सफल कीर्तिमान को जल्द ही लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज कराया जाएगा। 


जाहिर सी बात है कि कोसी तट पर वृक्षारोपण का जो मानदंड स्थापित हुआ है उसे पार करने के लिए हमने 22 जुलाई को रिस्पना तट पर वृक्षारपोण का महाअभियान तय किया है। इस कार्यक्रम में 40 से ज्यादा स्कूलों के बच्चे, समाजसेवी व पर्यावरण संगठन, महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग, छात्र सभी इसमें भागीदारी करेंगे। कुल मिलाकर 22 जुलाई को रिस्पना नदी के किनारे ढाई लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया है।


मैं इस ब्लॉग के माध्यम से आप सभी सुधी जनों से अपील करता हूं, कि धरती को संवारने, पर्यावरण बचाने और हमारे जलस्रोतों के संरक्षण का अभियान किसी एक व्यक्ति या एक सरकार का अभियान नहीं है। यह एक व्यापक जन अभियान है, और इस पुनीत संकल्प को पूरा करने में आप सभी अपना योगदान दें। हमारा प्रदेश प्रकृति के बेहद करीब है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी भी उतनी ही ज्यादा है। यह गंगा की धरती है, भगीरथ की धरती है, तो क्या हम सब मिलकर रिस्पना और कोसी को बचाने का भगीरथ प्रयास नहीं कर सकते? हम वृक्षारपोण की सीख देने वाले हरेला त्योहार को मनाते हैं, इसलिए हम सभी के मन में ये भाव जरूर होना चाहिए कि हमारे जलस्रोतों के संरक्षण की जिम्दारी भी हमारी ही है। जिस तरह कभी ब्रिटेन के लोगों ने वहां की प्रदूषित टेम्स नदी को जन जन की सहभागिता से एक स्वच्छ नदी में तब्दील किया है. मुझे भी पूरी उम्मीद है कि आप सभी के सहयोग से हम रिस्पना, कोसी और प्रदेश की अन्य नदियों को पुनर्जीवित करने के प्रयास में जरूर सफल होंगे।धन्यवाद।


Wednesday, 20 June 2018

देवभूमि से योगभूमि तक का सफर


अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर जन जन के प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का देवभूमि पधारने पर हार्दिक अभिनंदन करता हूं। मुझे बड़ी प्रसन्नता है कि योगभूमि उत्तराखंड की पावन धरती पर इस बार योग के महाकुंभ का आयोजन हो रहा है। इस बार 50 हजार से ज्यादा लोगों को प्रधानमंत्री जी के सानिध्य में उत्तराखंड के स्वच्छ वातावरण में योग करने का सुखद सौभाग्य मिल रहा है। उत्तराखंड वासियों में इस योगपर्व के लिए खासा उत्साह दिख रहा है।


योग दिवस के प्रस्ताव की वैश्विक स्वीकारोक्ति एक परिवर्तनकारी घटना है। याद कीजिए 27 सिबंतर 2014 का दिन, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा था। यह एक ऐतिहासिक पल तो था ही, हर भारतवासी के लिए गौरव का क्षण भी था। इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में रिकॉर्ड तीन महीनों में सहमति बनी और 11 दिसंबर 2014 को यूएन ने इस प्रस्ताव को मंजूर किया और 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की। योग के लिए संपूर्ण विश्व के एकजुट होने की घटना कोई सामान्य घटना नहीं थी। इसी तरह योग के लिहाज से 21 जून 2018 की तारीख भी उत्तराखंड के लिए एक परिवर्तनकारी घटना होगी।

      देवभूमि उत्तराखंड में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का आयोजन किसी वरदान से कम नहीं है। उत्तराखंड योग और अध्यात्म की राजधानी रही है। यहां की कंदराओं में प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों ने तप और योग किया है। योग यहां की धरा से प्रवाहित हुआ है, इसलिए एक बार फिर योग के महाकुंभ के आयोजन की जिम्मेदारी मिलना हमारा सौभाग्य है। यह दिन उत्तराखंड के इतिहास में एक परिवर्तनकारी दिन साबित होगा। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री जी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं।
      हम सभी जानते हैं कि आने वाले समय में उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान होगा। योग और आध्यात्मिक पर्यटन इस क्षेत्र में विशेष योगदान दे सकते हैं। देवभूमि की धरा से जब योग का संदेश दुनिया के कोने कोने में जाएगा तो यह विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करने में सहायक होगा। उत्तराखंड को योगभूमि के तौर पर पहचान मिलेगी। हमारे प्रदेश के युवाओं को योग और पर्यटन से जुड़ने का अवसर मिलेगा और बड़ी मात्रा में रोजगार सृजित होंगे। इस तरह योग न सिर्फ हमें स्वस्थ रखने का जरिया बनेगा, बल्कि प्रदेश की आर्थिक सेहत सुधारने में भी सहायक साबित होगा। हमारी सरकार 13 जिलों में 13 नए पर्यटक स्थल विकसित करने पर आगे बढ़ रही है। इस तरह पर्यटन को योग और अध्यात्म से जोड़कर हम प्रदेश को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।

  योग स्वास्थ और कल्याण का समग्र दृष्टिकोण है। योग केवल व्यायाम भर ना होकर अपने आप से  प्रकृति के साथ तादात्मय को प्राप्त करने का माध्यम है। यहहमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हमारे अंदर जागरूकता उत्पन्न करके केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि वैश्विक समस्याओं से लड़ने में सहायक सिद्ध हो सकताहै।  
समस्त मानवजाति के कल्याण के लिए उठाए गए इस ऐतिहासिक कदम ने भारत के महान दर्शन सर्वेभवंतु सुखिनसर्वे संतु निरामया: के भाव को चरितार्थ किया है।
आइए हम सब मिलकर प्रधानमंत्री जी द्वारा दिए गए विश्वकल्याण के इस योग मंत्र को अपनाकर जीवन में आनंद की अनुभूति प्राप्त करें।


Saturday, 28 April 2018

महिलाओं को सशक्त बनाएगा पिरूल, निकलेगी बिजली, बढ़ेगा रोजगार



अमूल्य वन संपदा से भरपूर उत्तराखंड के जंगल अब आय का जरिया बनने के साथ साथ बिजली उत्पादन का साधन भी बनेंगे। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थितियों को देखें, तो कुछ समय से चीड़  के जंगल तेजी से बढ़ रहे हैं। उत्तराखंड में 4 लाख हेक्टेयर वन भूमि है, जिसमें से 16.36 प्रतिशत में चीड़ के वन हैं। चीड़ की पत्तियां जब तक हरी रहती हैं तब तक तो इन्हें पशुओं के बिछावन के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है, लेकिन बाद में इसका उपयोग नहीं हो पाता। गर्मियों से पहले चीड़ की शंक्वाकार पत्तियां गिर जाती हैं, सूखने पर यही पत्तियां पिरूल कहलाती हैं। लेकिन गर्मियों के दिनों में यही पिरूल वनाग्नि का कारण बन जाता है। किसी भी मिश्रित वन में इस पिरूल पर तेजी से आग फैलती है, जो पूरे जंगल को चपेट मे ले लेती है, इससे वन संपदा के साथ जनहानि, पशुहानि भी होती है।
हमारे उत्तराखंड में ऐसी कई तरह की चुनौतियां हैं। लेकिन हमारी सरकार ने हमेशा इन चुनौतियों के बीच समाधान की तलाश की है। हमने उत्तराखंड में पिरूल नीति लागू कर, चीड के वनों को राजस्व का जरिया बनाया है, पिरूल के उपयोग से बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है।


क्या है पिरूल नीति
सरकार चीड़ की पत्तियों का सदुपयोग करेगी। पिरूल को व्यावसायिक उपयोग में लाकर इनसे विद्युत उत्पादन और बायोफ्यूल उत्पादन किया जाएगा। पिरूल से हर साल 150 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। बिजली उत्पादन के लिए राज्य में विक्रिटिंग और बायो ऑयल संयंत्र स्थापित किए जाएंगे। इन संयंत्रों के स्थापित होने से पिरूल को प्रोसेस किया जाएगा व बिजली उत्पादन किया जा सकेगा। ये संयंत्र स्वयंसेवी संस्थाओं, औद्योगिक संस्थानों, ग्राम पंचायतों, वन पंचायतों, महिला मंगल दलों द्वारा संचालित किए जाएंगे। प्रदेश में ऐसी करीब 6000 इकाइयां स्थापित करने की योजना है।
पिरूल से बायोफ्यूल और बिजली बनाने के लिए एक किलोवाट की इकाई स्थापित करने में करीब एक लाख रुपए तक का खर्च आता है। लेकिन 25 किलोवाट तक की इकाइयों को एमएसएमई के तहत अनुदान उपलब्ध कराया जाएगा। 25 किलोवाट तक की एक इकाई से सालभर में 1 लाख 40 हजार यूनिट बिजली और करीब 21 हजार किलो चारकोल निकलेगा। इसे बेचने से 9.3 लाख रुपए तक की आय प्राप्त हो सकती है।

रोजगार और महिला सशक्तीकरण का जरिया बनेगा पिरूल
पिरूल नीति से महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण और रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी। पिरूल संयंत्र तक जंगलों से पिरूल कलेक्ट करने में स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलेगा। वन पंचायत स्तर पर महिला मंगल दलों को इसकी जिम्मेदारी दी जाएगी। इस तरह महिलाएं घर बैठे रोजगार प्राप्त कर सकेंगी, और आर्थिक रूप से सशक्त बनेंगी। महिला समूहों और महिला वन पंचायतें की भूमिका और भी सशक्त हो सकेगी। चूंकि प्रदेश में ऐसे करीब 6 हजार पिरुल संयंत्र स्थापित करने की योजना है, अगर एक संयत्र से 10 लोगों को भी रोजगार मिले तो कुल 60 हजार लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार मिल सकेगा। इस तरह पलायन पर बहुत हद तक रोक लग सकेगी।

इस तरह पिरूल नीति महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में उपयोगी साबित होगी। हमारी सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई कदम उठाए हैं। मंदिरों के प्रसाद से महिलाओं की आर्थिकी को संवारने की योजना, एलईडी उपकरणों के निर्माण की ट्रेनिंग देकर उनमें व्यावसायिकता को बढ़ावा देना और ग्रोथ सेंटर में महिलाओं को रोजगार देने के बाद अब हमने पिरूल को उनकी आमदनी से जोड़ा है।

मैं उत्तराखंड की नारीशक्ति को यकीन दिलाना चाहता हूं कि हम मन वचन कर्म से महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में दिन रात जुटे हैं। पिरूल नीति भी अलग अलग आयामों से उत्तराखंड के विकास में कारगर साबित होगी, ऐसा मुझे विश्वास है।


                                                (त्रिवेंद्र सिंह रावत)
                                                मुख्यमंत्री, उत्तराखंड।

Thursday, 8 March 2018

आधी आबादी को मिले पूरा हक


8 मार्च दुनिया का इतिहास में बेहद खास दिन है। ये दिन दुनिया की आधी आबादी के नाम समर्पित है। ये दिन समाज के उस बड़े हिस्से के लिए महत्वपूर्ण है जिसके बिना संसार की कल्पना अधूरी रह जाती। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इस पावन मौके पर मैं आप सभी लोगों का अभिनंदन करता हूं। दुनिया की आधी आबादी हमारे लिए न केवल सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों की महत्वपूर्ण धुरी है, बल्कि नारी को हमारे शास्त्रों में देवतुल्य स्थान मिला है। इसीलिए कहा गया है

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते.....रमंते तत्र देवता

यानी जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास होता है।
आप सोचिए जन्म देने के लिए मां चाहिए, राखी बांधने के लिए बहन चाहिए, लोरी सुनाने के लिए दादी चाहिए, जिद पूरी करने के लिए मौसी चाहिए, खीर खिलाने के लिए मामी चाहिए, साथ निभाने के लिए पत्नी चाहिए, पर ये सभी रिश्ते निभाने के लिए महिला जरूरी है। इसलिए हमारे समाज में महिला, जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन के हर पहलू का आधार है। और अगर हम अपने आधार को मजबूत नहीं कर पाते तो हम कभी पूर्ण नहीं हो सकते, हम खोखले रह जाएंगे।

हमारे प्राचीन शास्त्रों में भी नारी के महत्व को समझा गया गया है। इसीलिए लिखा गया है.....

अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।
पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्||

अर्थात् अहिल्या, द्रौपदी, कुन्ती, तारा तथा मन्दोदरी, इन पाँच कन्याओं का स्मरण मात्र से संपूर्ण पापों का विनाश होता है।

और आज हम महिला दिवस के पावन अवसर पर यहां हैं तो महिला उत्थान के लिए हमें भी कुछ रूढ़ियों, असामनताओं, और अंधविश्वासों का विनाश करना होगा। हमें महिलाओं के बेहतर भविष्य के लिए उनका वर्तमान संवारना होगा इसीलिए बेटियों की सुरक्षा, शिक्षा, समृद्धि और सशक्तिकरण के लिए हमें अभी से कदम उठाने होंगे।

हमारा प्रदेश तीलू रौतेली, रामी बौराणी, गौरा देवी का प्रदेश है। इसलिए यहां महिलाओं को क्या सम्मान मिलना चाहिए यह हम सब अच्छी तरह समझते हैं। हमें याद है उत्तराखंड आंदोलन के दौरान भी हमारी सैकड़ों माताओं, बहनों ने बढ़चढ़कर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। इसलिए नारी शक्ति के सम्मान और उत्थान के लिए प्रयास करना हम सबका परम कर्त्व्य है।

जब हम महिलाओं को सक्रिय प्रतिनिधित्व देने क बात करते हैं, तो मुझे इस बात की खुशी है कि हमारी विधानसभा में वर्तमान में 5 महिला विधायक हैं, नेता प्रतिपक्ष भी महिला हैं और हमारी सरकार में एक मंत्री महिला हैं। महिला सशक्तिकरण के इस उत्तम उदाहरण के साथ हम प्रेरणा लेकर आगे बढ़ सकते हैं।


ये भी हमारे समाज की कड़वी सच्चाई रही है कि महिलाओं को जीवन में कदम कदम पर लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
लेकिन अब समय बदल रहा है, इसलिए आईए आज के दिन पर हम ये संकल्प लें कि किसी भी कीमत पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं होंने देंगे।

हमारी सरकार ने भी महिला सशक्तीकरण और समाज में उनकी बराबर भागीदारी के लिए प्रयास किए हैं।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
महिलाओं के भविष्य के लिए बेटियों का आज सुरक्षित करने की सोच पर चलकर प्रधानमंत्री मोदी ने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की थी।
कुछ लोग कहते थे कि ऐसी बातें करने से खास फर्क नहीं पड़ता...लेकिन मैं आपको एक उदाहरण देता हूं कि बेटी बचाओ की सामूहिक पहल क्या रंग ला सकती है।
उत्तराखंड का पिथौरागढ़ जिला लिंगानुपात के मामले में देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक था। 2011 में यहां प्रति एक हजार बालकों पर मात्र 824 बालिकाएं थी।

लेकिन बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना के बाद व्यापक जागरुकता आई। पिथौरागढ़ में सरकार, समाजसेवी संस्थाओं और जनसहयोग से व्यापक जागरुकता अभियान चलाया गया

और पिछले साल हमने पिथौरागढ़ में घर घर जाकर सर्वे कराया। अक्टूबर 2017 में किए गए सर्वे के मुताबिक आज जिले का करीब करीब हर घर बेटियों से गुलजार हुआ है। अब यहां प्रति एक हजार बालकों पर 935 बालिकाएं हो गई हैं।

हमारे प्रदेश में उत्तरकाशी ऐसा जिला है जहां बालिका लिंगानुपात बालकों के मुकाबले ज्यादा है।

उज्जवला
केंद्र सरकार ने गरीब महिलाओं की परेशानियों औऱ सम्मान को ध्यान मे रखते हुए उज्जवला योजना शुरू की थी। इस योजना के बाद धुएं में परेशानियां उठा रही करोड़ों गरीब महिलाओं की तकदीर बदली है। मुझे खुशी है कि इस बार केंद्रीय बजट में उज्जवला योजना के तहत लाभ पाने पाने वाली महिलाओं का आंकड़ा 5 करोड़ से बढ़ाकर 8 करोड़ किया गया है। आप सोचिए महिलाओं की जिंदगी में यह एक कोसिश कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती है। उनको स्वस्थ औऱ धुआंमुक्त जीवन देने में सफल रह सकती है।

चूंकि महिलाएं आज समाज में बराबरी के लिए आवाज उठाती रही हैं। इसलिए तकनीक और कौशल दो ऐसी बातें हैं जिनसे ये संभव हो सकता है। केंद्र सरकार की ओर से महिलाओं को सिक्ल डेवलेपमेंट करने के लिए स्टेप योजना चलाई जा रही है जिससे लाखों महिलाएं लाभ ले रही हैं

इसी तरह महिला शक्ति केंद्रों, महिला पुलिस वॉलिंटियर्स और महिला ई-हाट के जरिए भी महिलाओं को समाजिक और आर्थिक रूप से सश्कत बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं

उत्तराखंड में प्रयास
देवभूमि में पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण यहां की महिलाएं मुश्किल जीवन जीती हैं। इसलिए हमने उनके उत्थान के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम करना शुरू किया है। नवजात बच्चियों का स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए वैष्णवी हेल्थ किट मुहैया कराई जा रही हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में बालिकाएं पीछे न रह जाएं, इसके लिए उनकी शिक्षा में कोई कमी नहीं रहने दी जाएगी। मेधावी बालिकाओं सरकार की ओर से लैपटॉप बांटे जा रहे हैं।

किशोरियों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है कि उन्हें मेन्स्ट्रेरशन के बारे में जागरुकता हो, स्वच्छता के लिए जागरुकता हो। इसलिए सस्ती दरो पर सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराने के लिए स्पर्श सैनेटरी नैपकिन योजना शुरू की गई है।
हमने महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए मंदिरों के प्रसाद को आमदनी का जरिया बनाने की पहल की है।बद्रीनाथ के 3 महिला स्वयंसहायता समूहों ने स्थानीय अनाजों से प्रसाद निर्मित किया औऱ उसे स्थानीय रेशों की टोकरी में पैकेजिंग करके बेचा। मुझे खुशी है कि महिलाओं ने पिछले सीजन में 19 लाख का प्रसाद बेचा और 9 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कमाया। इस सफल प्रयोग को हम उत्तराखंड के 625 प्रमुख मंदिरों में शुरू करने जा रहे हैं।




तकनीक और कौशल में महिलाएं आगे बढ़ें, पुरुषों का मुकाबला करें, इसलिए उन्हें छोटे उद्यमों की ट्रेनिंग दी जा रही है। एक दिन पहले ही हमने थानो में एलईडी उपकरणों के निर्माण के लिए ट्रेनिंग सेंटर की शुरुआत की है, जहां 50 महिलाएं ट्रेनिंग ले रही हैं। महिला दिवस के अवसर पर यह उनके लिए एक तोहफा हमने दिया है।
 हम 670 न्यायपंचायतों को ग्रोथ सेंटर के रूप में विकसित कर रहे हैं। इनमें से इस वर्ष 15 ग्रोथ सेंटर शुरू हो जाएंगे, जहां महिलाओं को कपड़ा बनाने, सिलाई, आदि की ट्रेनिंग दी जाएगी। निश्चित रूप से ये प्रयास महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण में मददगार साबित होंगे।

समाजिक भागीदारी में भी महिलाओं की भूमिका को हम आगे रख रहे हैं। इसके तहत सड़कों के रखरखाव में महिला स्वयंसहायता समूहों की मदद ली जा रही है। हमने प्रदेश में देहरादून औऱ हल्द्वानी में 2 महिला बैंक स्थापित किए हैं, जहां सभी महिला कर्मचारी हैं। हम प्रत्येक जिले में एक एक महिला बैंक स्थापित कर रहे हैं। इस तरह महिलाओं को कामकाज का स्वस्थ व प्रतिस्पर्धी माहौल मिल सकेगा।

आज महिला दिवस के अवसर पर मैं पूरे समाज से ये सकल्प चाहता चाहता हूं कि हम हर हाल में महिलाओं को बराबरी पर लाकर खड़ा करेंगे। सामाजिक भेदभाव, लैंगिक भेदभाव की विषमताओं को तोड़ फेंकेंगे। और स्वस्थ व सभ्य समाज का निर्माण करेंगे
अंत में मैं बस इतना कहूंगा...

हे माता, बहनों, बेटियों..
दुनिया की जन्नत तुमसे है
मुल्कों की बस्ती हो तुम...
कौमों की इज्जत तुमसे है...
धन्यवाद।